बाबा रामदेव के एलोपैथिक बयान पर एक चिकित्सकीय चिंतन
पिछले दिनों बाबा रामदेव ने एलोपैथी को एक "दिवालिया और स्टूपिड साइंस" कहा और इसे "लाखों लोगों की मौत" का ज़िम्मेदार ठहराया। इसके कारण योग और एलोपैथी को मानने वाले लोगों के बीच एक द्वंद की स्थिति पैदा हो गई। इस प्रकार के द्वंद भ्रांतिपूर्ण होते हैं और आम लोगों के मन में चिकित्सा विज्ञान की आधी-अधूरी समझ पैदा करते हैं। इसका बुरा असर सीधे-सीधे हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है।

इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं: मान लो किसी व्यक्ति को BP, sugar, या thyroidism जैसा कोई chronic disorder है। एलोपैथिक उपचार में ऐसे मरीज को एक विशेष दवाई, एक निश्चित मात्रा में हर रोज़ खानी पड़ती है, जीवनभर। एलोपैथी में इन disorders का कोई भी स्थायी इलाज नहीं है, जबकि योग दावा करता है कि इन बीमारियों को जड़ से मिटाया जा सकता है।

योग के इस दावे के संबंध में मैं अपना एक व्यक्तिगत अनुभव साझा करना चाहूँगा। आज से कुछ महीनों पहले मुझे hyperthyroidism की शिकायत हुई। एक डॉक्टर से मिलने पर उन्होंने मुझे एक विशेष गोली हर रोज़ लेने को कहा। जब मैंने उनसे पूछा कि दवाई जीवनभर क्यों लेनी है, तो उन्होंने कहा कि फिलहाल hyperthyroidism का कोई स्थाई इलाज नहीं है। न उन्होंने मुझे खाने का कोई परहेज बताया और न ही कोई आसन या प्राणायाम करने की सलाह दी।

लेकिन मुझे पूरा विश्वास था कि शरीर में इतनी क्षमता है कि वह किसी भी disorder को अपने सामान्य स्तर तक ला सकता है. शर्त यह थी कि मुझे अपनी जीवनशैली को इसके अनुरूप ढालना होगा। और योग-अभ्यास से अपने ऊर्जा तंत्र को सही रूप से संतुलित करना होगा। मेरे लिए यह बहुत कठिन नहीं था क्योंकि नियमित रूप से पिछले 20 सालों से ध्यान और पिछले 5 सालों से योग करता रहा हूँ।

कुछ ही महीनों में, कुछ आसनों और प्राणायामों के द्वारा मेरी दवाई बंद हो गई। मेरी जाँच रिपोर्ट देखकर स्वयं डॉक्टर भी बड़े अचंभित थे क्योंकि आमतौर पर एक बार यदि BP, sugar, या thyroidism की दवाई शुरू हो जाए तो फिर वह कभी बंद नहीं होती।

मेरे साथ हुए चमत्कार में एलोपैथी और योग के आपसी समन्वय का खेल था। एक ओर जहाँ एलोपैथिक दवाइयों ने thyroid gland को रसायन के स्तर पर संतुलित करना शुरू किया, वहीं दूसरी ओर योग ने जड़ों पर काम शुरू किया। और दोनों ने मिलकर thyroidism को सामान्य स्तर पर ला दिया।

यहाँ एक प्रश्न यह उठता है कि मेरे डॉक्टर ने मुझे किसी प्रकार के योग करने की सलाह क्यों नहीं दी? शायद इसीलिए क्योंकि योग उनकी चिकित्सा पद्धति का हिस्सा नहीं था। और न ही शायद उन्होंने व्यक्तिगत रूप से योग पर किसी प्रकार के प्रयोग किए थे।

एक चिकित्सा विज्ञान के रूप में योग का अपना कार्य करने का ढंग है। यह बहुत धीरे-धीरे कार्य करता है क्योंकि यह पूरी जड़ों को पोषित करता है। जबकि एलोपैथी त्वरित इलाज में बड़ी कारगर सिद्ध होती है।

उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को अचानक हृदयाघात आ जाए, तो उसे प्राणायाम करने की सलाह नहीं दी जा सकती, बल्कि अस्पताल में ले जाकर उपयुक्त इलाज करना होगा। लेकिन उसका ह्रदय स्वस्थ रहे आगे इसके लिए उसे योग को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा।

कुछ योग के अंधभक्त होते हैं जो गंभीर स्थिति में भी एलोपैथिक दवाइयाँ नहीं लेते। वैसे ही कुछ एलोपैथी के कट्टर समर्थक होते हैं जो योग को पूर्णतः नकार देते, और दवाइयों पर निर्भर होकर अपने शरीर की दुर्गत करते रहते हैं।

दरअसल योगिक जीवनशैली विकसित करना कठिन है, इसीलिए लोग इससे बचते हैं, और अपने आलस्य के कारण गोलियाँ खाकर जल्द इलाज चाहते हैं। लेकिन वे एक रोग से मुक्त होते हैं और दूसरे रोग से घिर जाते हैं।

चूँकि किस एलोपैथिक दवाई के क्या side effects होंगे इसके बारे में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता, इसीलिए रोग का ख़तरा बना रहता है। जैसे कि, शुगर की कोई दवाई ह्रदय पर क्या दुष्प्रभाव डाल रही है, या सिरदर्द की दवाई किडनी/आँतों पर क्या असर कर रही है इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

इस विकट स्थिति में हम सभी की ज़िम्मेदारी बनती है कि हम दवाइयों को कम से कम उपयोग करें; और जितना संभव हो अपने आप को अंदर से स्वस्थ करें।

इसका अर्थ यह नहीं है कि एलोपैथी की निंदा करें या उसे नकार दें। बस यह जानें कि दवाइयों पर अतिनिर्भरता हमारे मौलिक ढाँचे को कमज़ोर बना सकती है। इसी अतिनिर्भरता के कारण हमारी जान भी जा सकती है। और लाखों लोगों की जानें गईं भी हैं।

लेकिन क्या उन लोगों की मृत्यु के लिए एलोपैथी को कठघरे में खड़ा करें?

अतः, मेरी योग और एलोपैथी के समर्थकों― विशेष रूप से योग शिक्षकों और डॉक्टरों―से यह विनती है कि एक दूसरे की चिकित्सा पद्धति का मूल्य जानें और आम जनमानस को इसके प्रति जागरूक करें।